जब
एक P प्रकार के अर्धचालक को N प्रकार के अर्धचालक से जोड़ा/मिलाया जाता है तो
हमें एक इनके जुड़ने वाली सतह पर एक जंक्शन प्राप्त होता है| इसे ही PN जंक्शन कहा
जाता है| यह PN जंक्शन एक बहुत ही महत्वपूर्ण युक्ति का निर्माण करती है, जिसे अर्धचालक डायोड, PN जंक्शन डायोड या क्रिस्टल डायोड कहा जाता है| P प्रकार से
निकलने वाले सिरे को एनोड कहा जाता है तथा N सिरे से निकलने वाले सिरों को कैथोड
कहा जाता है|
इस जंक्शन का निर्माण सामान्यत: विशेष विधियों द्वारा
P तथा N अर्धचालक को मिलाने से होता है| यदि हम P और N अर्धचालक के दो टुकडो
को आपस में वेल्डिंग के द्वारा जोड़ते है, तो इसकी संरचना में एकरूपता नहीं रहेगी
और जंक्शन का निर्माण नहीं होगा| PN जंक्शन के निर्माण हेतु बहुत सी तकनीकियो का
प्रयोग किया जाता है| जिनमे से कुछ निम्न है:
- Grown Junction
- Alloy Junction
- Diffused junction
- Epitaxial growth
- Point contract junction
जब P
प्रकार के अर्धचालक के बार (टुकड़े) में एक ओर दाता (डोनर) अशुद्धि को डिफ्यूशन विधि
द्वारा मिलाया जाता है जिससे इस अर्धचालक बार के एक ओर P प्रकार तथा दूसरी ओर N
प्रकार का अर्धचालक मिल जाता है| और इस प्रकार हमें एक PN संधि प्राप्त होती
है| हम जानते है,कि P प्रकार के अर्धचालक में मेजोरिटी चार्ज केर्रियर होल्स
होते है तथा माइनॉरिटी चार्ज कार्रियर इलेक्ट्रॉन्स होते है| इसमें अशुद्धि के
कारण कुछ नेगेटिव आयन भी उत्पन्न हो जाते है, जो की स्थिर अवस्था में होते है| इसी
प्रकार, N प्रकार में मेजोरिटी चार्ज केर्रियर इलेक्ट्रॉन्स, माइनॉरिटी चार्ज कार्रियर
होल्स तथा कुछ पॉजिटिव आयन होते है|
डोपिंग
के कारण सेमीकंडक्टर बार के एक और इलेक्ट्रॉन्स की तथा दूसरी और होल्स की
सान्द्रता अधिक हो जाती है| इस सान्द्रता को सेमीकंडक्टर में एकसमान करने के लिए
इलेक्ट्रॉन्स P प्रकार के अर्धचालक की ओर बढ़ते है और होल्स N प्रकार के अर्धचालक
की और बढ़ते है| जिससे सेमीकंडक्टर के मध्य में ये आपस में ये सहसयोजी बंध बना लेते
है और आयनस में परिवर्तित हो जाते है| इस प्रकार N प्रकार की ओर पॉजिटिव तथा P
प्रकार की ओर नेगेटिव आयनस की एक लेयर का निर्माण हो जाता है इस लेयर को डिप्लीशन
लेयर (अवक्षय परत) कहा जाता है| चार्ज केरिएर कि संध्रता के असंतुलन के कारण सेमीकंडक्टर
में फ्री चार्ज एक ओर से दूसरी ओर जाते है| जिससे कुछ समय के लिए सेमीकंडक्टर में
करंट बहता है| इस करंट को डिफ्यूशन करंट कहा जाता है|
डिप्लीशन
लेयर के निर्माण के पश्चात् कोई भी फ्री चार्ज N प्रकार से P की ओर तथा P प्रकार
से N की ओर नहीं जा पता| क्योकि इलेक्ट्रॉन्स तथा होल्स दोनों को ही डिप्लीशन लेयर
के आयनस के कारण प्रतिकर्षण का बल लगता है| जिसके कारण सभी चार्ज डिप्लीशन लेयर से
दूर हो जाते है| इस स्थिति में डिप्लीशन लेयर के आसपास कोई चार्ज केरियर नहीं
होता, अत: इस लेयर को स्पेस चार्ज रीजन भी कहा जाता है|
इस डिप्लीशन
लेयर के एक और पॉजिटिव आयनस की लेयर होती है तथा दूसरी ओर नेगेटिव की| अत: यहाँ पर
एक विभवान्तर उत्पन्न हो जाता है| इसे बैरियर वोल्टेज कहा जाता है| जिसका मान 0.7 V होता है|
अनबयास
की अवस्था में भी यह विभव सेमीकंडक्टर डायोड में उपस्थित रहता है| अत: यह एक
प्रकार की एक्टिव डिवाइस होता है| किसी भी डायोड को कार्य स्थिति में लेन हेतु
हमें उस पर उसके बैरियर वोल्टेज से अधिक वोल्टेज लगाना होता है|
Reference:
- R.S. Sedha, "A TextBook of Applied Electronics".
- J.B. Gupta, .
- https://www.electronicshub.org/wp-content/uploads/2015/01/4.-Representations-of-semi-condcutor-diode.jpg
- https://www.electronics-tutorials.ws/diode/diode4a.gif
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें