शनिवार, 1 सितंबर 2018

PN संधि अभिनिती



जब हम PN जंक्शन पर कोई भी विभव नहीं लगते, तब उसमे से बहने वाले करंट का मान शून्य होता है| इस प्रकार के PN जंक्शन को अन-अभिनीत (अनबयास) PN जंक्शन कहा जाता है| जब हम PN जंक्शन पर विभव लगते है| तो इसे PN जंक्शन की अभिनिती (बाईसिंग) कहा जाता है|

Fig.1. Unbiased PN Junction.

   जब हम PN जंक्शन पर बाह्य विभव लगाते है, तब इस विभव के कारण अवक्षय परत की चौड़ाई परिवर्तित होती है, जिसके कारण इसमें से बहने वाली धारा का मान भी परिवर्तित होता है| हम बाह्य विभव को दो प्रकार से PN जंक्शन पर लगा सकते है| जिसके आधार पर अभिनिती दो प्रकार की होती है| 

  1. अग्र-अभिनिती (Forward Bias)
  2. पश्च-अभिनिती (Reverse Bias)


  1. अग्र-अभिनिती:

जब हम PN जंक्शन के P सिरे (एनोड) को विभव के धनात्मक सिरे (एनोड) से और N सिरे (कैथोड) को ऋणात्मक सिरे (कैथोड) से जोड़ते है तो इस स्थिति में PN जंक्शन से बहने वाली धारा का मान अधिक होता है| इसे PN जंक्शन की अग्र-अभिनिती कहा जाता है|

 
Fig. 2. Forward bias PN Junction.

जब हम PN जंक्शन को अग्र-अभिनीत करते है तब P सिरे पर विभव के एनोड के कारण पॉजिटिव फिल्ड उत्पन्न होती है| जिससे P टाइप सेमीकंडक्टर के बहुसंख्यक आवेश वाहक (होल्स) पर प्रतिकर्षण का बल लगता है| जिसके कारण ये जंक्शन की और जाने लगते है| इसी प्रकार N सिरे पर विभव के कैथोड के कारण नेगेटिव फिल्ड उत्पन्न होती है जिससे की N टाइप सेमीकंडक्टर के बहुसंख्यक आवेश वाहको (इलेक्ट्रॉन्स) पर प्रतिकर्षण का बल लगता है और यह भी जंक्शन की और गमन करते है| P टाइप सेमीकंडक्टर के होल्स तथा N टाइप के इलेक्ट्रॉन्स जंक्शन पर पुन: बंध बना लेते है| जिससे जंक्शन का विभव तथा चौड़ाई दोनों कम होने लगाती है|

जैसे-जैसे बाह्य विभव का मान बढ़ता है, वैसे-वैसे रिकम्बाइन होने वाले इलेक्ट्रॉन्स और होल्स की संख्या बढ़ती जाती है| और PN जंक्शन से बहने वाली धारा का मान बढ़ता जाता है| विभव के कैथोड से इलेक्ट्रॉन्स N टाइप सेमीकंडक्टर में प्रवेश करते है, इन इलेक्ट्रॉन्स पर नेगेटिव चार्ज होने से इन पर प्रतिकर्षण का बल लगता है और ये जंक्शन की ओर बढ़ने लगते है| P सिरे पर पॉजिटिव फिल्ड के कारण P टाइप सेमीकंडक्टर में सहसयोजी बंध टूटते है|जिससे इलेक्ट्रॉन्स और होल्स जनरेट होते है| इलेक्ट्रॉन्स पॉजिटिव फील्ड की और आकर्षित होते है और विभव के पॉजिटिव सिरे की ओर आकर्षित होते है और होल्स पर प्रतिकर्षण का बल लगता है और वह जंक्शन की ओर गति करता है और इस प्रकार होल्स और इलेक्ट्रॉन्स पुन: रिकम्बाइन होते है| इससे यह स्पष्ट है कि PN जंक्शन के अन्दर करंट इलेक्ट्रॉन्स तथा होल्स दोनों के कारण बहता है| जबकि PN जंक्शन के बाहर करंट केवल इलेक्ट्रॉन्स के कारण बहता है|

 

Reference:

  1. R.S. Sedha, "A TextBook of Applied Electronics".
  2. J.B. Gupta,.
  3. Unbiased PN Junction ; https://www.google.co.in/search?hl=en&tbm=isch&source=hp&biw=1366&bih=659&ei=Q0qKW-rsFNjdrQGnjoOICw&q=unbiased+pn+junction&oq=unbiased+pN&gs_l=img.3.0.0l2j0i24k1.307.10723.0.13312.12.10.0.2.2.0.333.1754.0j1j4j2.7.0....0...1ac.1.64.img..3.9.1788.0..35i39k1.0.Vj0IWkVO16w#imgrc=1Uf8QKS9RHDIyM:
  4. Biased PN Junction: https://www.google.co.in/search?hl=en&tbm=isch&source=hp&biw=1366&bih=659&ei=Q0qKW-rsFNjdrQGnjoOICw&q=unbiased+pn+junction&oq=unbiased+pN&gs_l=img.3.0.0l2j0i24k1.307.10723.0.13312.12.10.0.2.2.0.333.1754.0j1j4j2.7.0...

शुक्रवार, 11 मई 2018

ट्रांजिस्टर


ट्रांजिस्टर आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स का आधारभूत युक्ति है जिसमे आउटपुट करंट, वोल्टेज तथा पॉवर को इनपुट करंट द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है| यह दो प्रकार के होते है बाइपोलर जंक्शन ट्रांजिस्टर (Bipolar Junction Transistor (BJT)) तथा फिल्ड इफ़ेक्ट ट्रांजिस्टर (Field Effect Transistor (FET))| BJT को सामान्यत: जंक्शन ट्रांजिस्टर या ट्रांजिस्टर भी कहा जाता है| BJT उसके नाम के अनुसार ही द्विसंधी (bi-junction), द्विआवेशित (bi-polar), तिन सिरों (three terminal) वाली सेमीकंडक्टर डिवाइस है| इसमें चूँकि दो जंक्शन होते है अत: इसमें दो P प्रकार के अर्धचालको के मध्य एक N प्रकार का अर्धचालक अथवा दो N प्रकार के अर्धचालको के मध्य एक P प्रकार का अर्धचालक होता है| जिससे इसमें दो जंक्शन का निर्माण होता है| इन तीनो भागो से एक-एक सिरे को जोड़ा जाता है जिसे सामान्यत: एम्मिटर, बेस तथा कलेक्टर कहा जाता है| जो निचे चित्र में प्रदर्शित है|

एम्मिटर:
ट्रांजिस्टर में एम्मिटर चार्ज केर्रिएर को एम्मिट (उत्सर्जित) करने का कार्य करता है| चूँकि यह चार्ज केरिएर को एम्मिट करता है अत: इसमें डोपिंग लेवल अधिक होता है| इसका आकार बेस की तुलना में अधिक तथा कलेक्टर की तुलना में कम होता है| डोपिंग अधिक होने के कारण डिप्लीशन लेयर की चौड़ाई एम्मिटर में कम होती है|

बेस:
ट्रांजिस्टर में बेस एम्मिटर द्वारा एम्मिट किये गए चार्ज को रास्ता प्रदान करता है| इसमें डोपिंग लेवल एम्मिटर तथा कलेक्टर की तुलना में बहुत कम होता है एवं इसका आकर भी दोनों की तुलना में बहुत ही कम होता है| चूँकि इसमें डोपिंग लेवल कम होता है अत: इसमें डिप्लीशन लेयर की चौड़ाई अधिक होती है| 

कलेक्टर:
इस भाग में एम्मिटर द्वारा एम्मिट किये गए चार्ज को इक्कट्ठा (collect) किया जाता है| चूँकि यहाँ पर चार्ज को कलेक्ट किया जाता है इसलिए इसकी साइज़ एम्मिटर और बेस दोनों की तुलना में अधिक होती है| इसका आकर अधिक होने का एक कारण यह भी है की यहाँ चार्ज को कलेक्ट किया जाता है और चार्ज ऊर्जा को उत्सर्जित करते है| इस ऊर्जा को संतुलित करने के लिए भी इसका आकार अधिक होता है| इसमें डोपिंग लेवल एम्मिटर से कम तथा बेस से अधिक होता है|

संरचना के आधार पर ट्रांजिस्टर दो प्रकार के होते है|
1. NPN        2.PNP
इन्हें निम्नांकित प्रतिको द्वारा प्रदर्शित किया जाता है|